विराट कोहली रणजी ट्रॉफी में भारतीय घरेलू क्रिकेट का सबसे प्रतिष्ठित टूर्नामेंट के सफल खिलाड़ी है, जिसने कई महान क्रिकेटरों को भारतीय क्रिकेट टीम तक पहुँचने का मंच दिया है। विराट कोहली भी उन खिलाड़ियों में से एक हैं, जिन्होंने रणजी ट्रॉफी में शानदार प्रदर्शन कर भारतीय क्रिकेट में अपनी जगह बनाई। उनके रणजी ट्रॉफी सफर की कहानी संघर्ष, समर्पण और सफलता की मिसाल है।
प्रारंभिक क्रिकेट और रणजी ट्रॉफी में पदार्पण
विराट कोहली का जन्म 5 नवंबर 1988 को दिल्ली में हुआ था। बचपन से ही उन्हें क्रिकेट में गहरी रुचि थी और उन्होंने महज 9 साल की उम्र में वेस्ट दिल्ली क्रिकेट अकादमी से क्रिकेट की बारीकियां सीखनी शुरू कर दी थीं। उनकी प्रतिभा को देखकर उन्हें दिल्ली की जूनियर टीमों में मौका मिला, और इसके बाद उनका चयन दिल्ली की रणजी ट्रॉफी टीम में हुआ।
विराट ने 2006-07 रणजी ट्रॉफी सीजन में दिल्ली के लिए पदार्पण किया। उस समय वह महज 18 साल के थे, लेकिन उनकी बल्लेबाजी की शैली और तकनीकी कौशल ने सभी को प्रभावित किया। हालांकि, उनकी सबसे बड़ी परीक्षा 2006 में आई, जब उन्हें अपने करियर की सबसे भावुक पारी खेलनी पड़ी।

भावुक 90 रनों की पारी: पिता की मृत्यु के बाद मैदान पर वापसी
19 दिसंबर 2006 को विराट कोहली के लिए एक बहुत ही कठिन दिन था। दिल्ली की टीम कर्नाटक के खिलाफ एक महत्वपूर्ण रणजी ट्रॉफी मैच खेल रही थी। उसी रात, विराट के पिता प्रेम कोहली का दिमागी स्ट्रोक (Brain Stroke) के कारण अचानक निधन हो गया। यह उनके जीवन का सबसे कठिन पल था, लेकिन उन्होंने अपने पिता के सपनों को पूरा करने का संकल्प लिया।
अपने पिता की मृत्यु के कुछ ही घंटों बाद, विराट कोहली ने टीम को संकट से उबारने के लिए बल्लेबाजी करने का फैसला किया। वह 90 रन बनाकर नाबाद रहे और फिर सीधे अपने पिता के अंतिम संस्कार में चले गए। इस पारी ने सभी को उनकी मानसिक मजबूती और क्रिकेट के प्रति समर्पण का एहसास कराया। इसके बाद से ही उनका खेल और अधिक निखरता गया।
2007-08 रणजी ट्रॉफी सीजन: जब विराट ने अपनी क्षमता साबित की
विराट कोहली ने 2007-08 रणजी ट्रॉफी सीजन में अपनी बल्लेबाजी से सभी को प्रभावित किया। इस सीजन में उन्होंने 6 मैचों में 698 रन बनाए, जिसमें उनका औसत 50 से अधिक था। इस प्रदर्शन ने चयनकर्ताओं का ध्यान आकर्षित किया और उन्हें भारतीय अंडर-19 टीम का कप्तान बना दिया गया।
2008 में विराट कोहली की कप्तानी में भारत ने मलेशिया में अंडर-19 विश्व कप जीता। इस सफलता के बाद, उन्हें आईपीएल में रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर (RCB) ने चुना और फिर जल्द ही भारतीय राष्ट्रीय टीम में भी जगह मिल गई।
रणजी ट्रॉफी में विराट का योगदान और प्रभाव
हालांकि विराट कोहली जल्द ही भारतीय टीम का हिस्सा बन गए, लेकिन रणजी ट्रॉफी ने उनके खेल को एक मजबूत आधार दिया। इस घरेलू टूर्नामेंट ने उन्हें वह तकनीकी दक्षता, धैर्य और मानसिक मजबूती प्रदान की, जिसने उन्हें अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में सफल बनाया।
विराट कोहली रणजी ट्रॉफी की पारी के कुछ महत्वपूर्ण पहलू
- धैर्य और संयम – लंबी पारियां खेलने की कला उन्होंने रणजी ट्रॉफी में सीखी।
- स्विंग और स्पिन के खिलाफ बेहतरीन खेल – घरेलू क्रिकेट में खेलकर उन्होंने कठिन परिस्थितियों में खेलना सीखा।
- लीडरशिप क्वालिटी – दिल्ली टीम में उन्होंने नेतृत्व कौशल भी विकसित किया, जिसने आगे चलकर उन्हें भारतीय टीम का कप्तान बनने में मदद की।
रणजी ट्रॉफी के बाद विराट कोहली का सफर
रणजी ट्रॉफी में अपने शानदार प्रदर्शन के बाद, विराट कोहली को 2008 में श्रीलंका के खिलाफ वनडे टीम में मौका मिला। वहां से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। विराट कोहली ने धीरे-धीरे खुद को भारतीय क्रिकेट के सबसे बड़े सितारों में से एक बना लिया।
उन्होंने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में कई कीर्तिमान स्थापित किए, जिनमें 80 अंतर्राष्ट्रीय शतक और 13000 से अधिक वनडे रन शामिल हैं। लेकिन उनकी सफलता की नींव रणजी ट्रॉफी में रखी गई थी, जहाँ उन्होंने कठिन परिस्थितियों में अपने खेल को निखारा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खुद को साबित करने की तैयारी की।

निष्कर्ष
रणजी ट्रॉफी भारतीय क्रिकेट की रीढ़ मानी जाती है और विराट कोहली का करियर इसका सबसे अच्छा उदाहरण है। इस घरेलू टूर्नामेंट ने उन्हें एक अनुशासित और मजबूत खिलाड़ी बनाया, जिसने आगे चलकर भारतीय क्रिकेट को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया।
आज भले ही विराट कोहली एक विश्वस्तरीय क्रिकेटर बन चुके हों, लेकिन उन्होंने हमेशा रणजी ट्रॉफी को अपने क्रिकेट करियर का महत्वपूर्ण हिस्सा माना है। उनकी सफलता उन सभी युवा खिलाड़ियों के लिए प्रेरणा है, जो रणजी ट्रॉफी के जरिए भारतीय क्रिकेट टीम में जगह बनाने का सपना देखते हैं।Read More Post http://mobilewalahai.co/ Virat Kohli